Rajasthan Drone Rainfall: राजस्थान में पहली बार ड्रोन से होगी बारिश! अमेरिका से आए वैज्ञानिकों ने शुरू किया प्रयोग
🛰️ Rajasthan Drone Rainfall प्रोजेक्ट की शुरुआत
राजस्थान में मानसून की बेरुख़ी और जल संकट से निपटने के लिए अब टेक्नोलॉजी का सहारा लिया जा रहा है। पहली बार राज्य में ड्रोन की मदद से कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) कराने की तैयारी की जा रही है। इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए अमेरिका से वैज्ञानिकों की एक टीम को बुलाया गया है। इस योजना का नाम है – Rajasthan Drone Rainfall Project, और इसे भारतीय मौसम विभाग (IMD) के सहयोग से संचालित किया जा रहा है।
☁️ क्या है ड्रोन से बारिश कराने की तकनीक?
ड्रोन से बारिश कराने की तकनीक को क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहा जाता है। इसमें ड्रोन या एयरक्राफ्ट को बादलों के पास भेजा जाता है और उसमें से सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) या सोडियम क्लोराइड जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है। ये कण बादलों में जाकर जलकणों को आकर्षित करते हैं जिससे कृत्रिम बारिश होती है।
इस तकनीक का प्रयोग पहले भी दुबई, चीन और अमेरिका जैसे देशों में सफलता पूर्वक हो चुका है। लेकिन भारत में ड्रोन के जरिए इस स्केल पर यह पहला प्रयोग है।
🌧️ Rajasthan Drone Rainfall प्रोजेक्ट के पीछे की सोच
राजस्थान के कई जिले जैसे कि जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर और जोधपुर में हर साल कम बारिश होती है जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। सरकार का मानना है कि अगर क्लाउड सीडिंग तकनीक सफल रही, तो सूखा प्रभावित इलाकों में राहत पहुंचाई जा सकती है।
मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, यह प्रोजेक्ट एक पायलट प्रोजेक्ट है, जिसे सफल होने पर राज्य के अन्य जिलों में भी लागू किया जाएगा।
🌎 अमेरिकी वैज्ञानिकों की भूमिका
इस प्रोजेक्ट को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए अमेरिका की National Center for Atmospheric Research (NCAR) और Weather Modification Inc. जैसी कंपनियों के वैज्ञानिकों को बुलाया गया है। इन विशेषज्ञों का अनुभव अमेरिका और मिडिल ईस्ट के देशों में क्लाउड सीडिंग मिशन में रह चुका है।
उन्होंने जयपुर और जोधपुर में रहकर स्थानीय मौसम का डेटा एनालिसिस किया और यह देखा कि कहां क्लाउड सीडिंग की संभावना सबसे अधिक है।
📍 किन जिलों में होगी ड्रोन से बारिश?
अभी तक मिली जानकारी के अनुसार, जयपुर, अजमेर, नागौर और झुंझुनूं जिलों में यह तकनीक सबसे पहले प्रयोग की जाएगी क्योंकि यहां पर मौसमी बादल पहले से मौजूद हैं और वातावरण क्लाउड सीडिंग के लिए अनुकूल है।
प्रोजेक्ट की सफलता पर नजर रखने के लिए एक विशेष कंट्रोल रूम भी बनाया गया है जहां मौसम विभाग और ISRO की टीम लगातार निगरानी कर रही है।
🔍 क्या है क्लाउड सीडिंग का असर और जोखिम?
हालांकि ड्रोन से बारिश कराने की तकनीक नई नहीं है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर अब भी रिसर्च जारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रसायनों की मात्रा नियंत्रित ना हो तो यह मिट्टी की गुणवत्ता और पेयजल स्रोतों को प्रभावित कर सकती है।
फिर भी, भारत में जल संकट को देखते हुए इसे एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।
🚀 तकनीक और पर्यावरण का संतुलन
राजस्थान जैसे राज्य में जहां जल संकट विकराल रूप ले चुका है, वहां ऐसी तकनीकें भविष्य के लिए आशा की किरण बन सकती हैं। हालांकि सरकार को चाहिए कि वह इस तकनीक के सभी पहलुओं का मूल्यांकन करके ही आगे कदम बढ़ाए।
📢 जनता की प्रतिक्रिया
किसानों और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों ने इस पहल का स्वागत किया है। उनका मानना है कि अगर यह तकनीक सफल होती है, तो उन्हें खेती-किसानी में बड़ी राहत मिलेगी और खाद्यान्न उत्पादन भी बढ़ेगा।