इम्फाल घाटी में ‘सिन्था लेप्पा’ के तहत जनजीवन ठप: जातीय हिंसा की दूसरी बरसी पर संवेदनशील माहौल
3 मई 2025 को मणिपुर की इम्फाल घाटी में आम जनजीवन पूरी तरह से ठप रहा। इसका मुख्य कारण था दो साल पहले 3 मई 2023 को भड़की भीषण जातीय हिंसा की दूसरी बरसी, जिसे विभिन्न सामाजिक और नागरिक संगठनों ने ‘सिन्था लेप्पा’ के रूप में मनाया। ‘सिन्था लेप्पा’ मणिपुरी भाषा में एक प्रतीकात्मक विरोध होता है, जिसका अर्थ है — “पूर्ण बहिष्कार”। इस दिन को चिन्हित करते हुए संगठनों ने दैनिक गतिविधियों को पूरी तरह से रोकने की अपील की थी, जिसे व्यापक जनसमर्थन मिला।
पृष्ठभूमि: 3 मई 2023 की जातीय हिंसा
मणिपुर में मेइती और कुकी समुदायों के बीच 3 मई 2023 को शुरू हुई हिंसा ने राज्य को हिला कर रख दिया था। यह संघर्ष शुरू में एक छात्र संगठन द्वारा आयोजित रैली से जुड़ा था, जो अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग कर रहे मेइती समुदाय के खिलाफ था। यह रैली धीरे-धीरे उग्र हो गई और दोनों समुदायों के बीच हिंसक टकराव में बदल गई। इस हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान गई, हजारों बेघर हुए और सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुंची।
‘सिन्था लेप्पा’ का प्रभाव
शनिवार को आयोजित ‘सिन्था लेप्पा’ का मणिपुर की राजधानी इम्फाल और आसपास के क्षेत्रों में गहरा असर देखने को मिला। शैक्षणिक संस्थान, व्यापारिक प्रतिष्ठान, बाजार, दुकानें और निजी कार्यालय पूरी तरह से बंद रहे। यहां तक कि पेट्रोल पंप और बैंकिंग सेवाएं भी दिनभर के लिए ठप रहीं।
सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा। केवल कुछ गिने-चुने निजी वाहन ही सड़कों पर नजर आए। सार्वजनिक परिवहन जैसे बसें, टैक्सियां और ऑटो रिक्शा पूरी तरह बंद रहे। रेलवे सेवाएं भी सीमित कर दी गईं, ताकि किसी प्रकार की भीड़ या असामाजिक गतिविधियों को रोका जा सके।
सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद
किसी भी प्रकार की हिंसा या अव्यवस्था से बचने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ओर से व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए गए। इम्फाल के संवेदनशील इलाकों जैसे कि थांगमेइबंद, मैजिंग, चुराचांदपुर और कांगपोकपी में अर्धसैनिक बलों की अतिरिक्त तैनाती की गई। फ्लैग मार्च और ड्रोन से निगरानी जैसे कदम भी उठाए गए। सुरक्षाबलों को हाई अलर्ट पर रखा गया ताकि किसी भी अप्रिय घटना की स्थिति में तुरंत कार्रवाई हो सके।
राज्य प्रशासन ने नागरिकों से अपील की कि वे शांति बनाए रखें और अफवाहों पर ध्यान न दें। सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए साइबर सेल को भी सक्रिय किया गया ताकि भड़काऊ पोस्ट या वीडियो को तुरंत हटाया जा सके।
संगठनों की भूमिका और मांग
इस विरोध का नेतृत्व करने वाले संगठनों में कई मानवाधिकार समूह, छात्र संगठन, और पीड़ित परिवारों के मंच शामिल थे। इन संगठनों की प्रमुख मांग थी कि 2023 की हिंसा के दोषियों को सख्त सजा दी जाए और पीड़ितों को न्याय मिले। उनका कहना है कि सरकार ने अभी तक जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कठोर कदम नहीं उठाए हैं और पीड़ितों का पुनर्वास कार्य भी अधूरा है।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने सरकार से यह भी अपील की कि वह विभिन्न समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा दे और स्थायी समाधान के लिए ठोस नीति तैयार करे। संगठनों ने स्पष्ट किया कि ‘सिन्था लेप्पा’ किसी एक समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि न्याय की मांग और शांति स्थापना की दिशा में एक सामूहिक पहल है।
जनता की भावना
स्थानीय जनता में इस दिन को लेकर मिश्रित भावनाएं देखने को मिलीं। कई लोगों ने इसे अपने दुःख और क्षोभ को व्यक्त करने का माध्यम बताया, वहीं कुछ लोगों ने शांति और सामान्य जनजीवन में व्यवधान की चिंता भी जताई। खासकर दुकानदारों और छोटे व्यापारियों ने कहा कि लगातार ऐसे विरोधों से उनकी आजीविका पर असर पड़ता है।
लेकिन अधिकांश नागरिकों ने ‘सिन्था लेप्पा’ का समर्थन किया और इसे न्याय के लिए एक आवश्यक कदम माना। कई लोगों ने पोस्टर और काली पट्टियाँ लगाकर विरोध प्रदर्शन में भाग लिया।
निष्कर्ष
इम्फाल घाटी में शनिवार को देखा गया ‘सिन्था लेप्पा’ मणिपुर के लोगों की उस गहरी पीड़ा और असंतोष का प्रतीक है, जो 2023 की हिंसा के बाद अब भी उनके दिलों में है। यह विरोध सिर्फ अतीत की घटना की याद नहीं, बल्कि भविष्य में शांति, समावेश और न्याय की मांग भी है। सरकार के लिए यह समय है कि वह केवल सुरक्षा उपायों पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता की पुनर्स्थापना और विश्वास बहाली पर भी गंभीरता से कार्य करे।