अरुणाचल प्रदेश विवाद फिर चर्चा में क्यों?
अरुणाचल प्रदेश विवाद एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन गया है, जब चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश को अपना क्षेत्र बताया। इस पर भारत सरकार ने सख्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा है और चीन की टिप्पणी “अस्वीकृत वास्तविकता” (unacceptable reality) पर आधारित है।
चीन का दावा और भारत की प्रतिक्रिया
चीन कई वर्षों से अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिणी तिब्बत” कहकर अपना हिस्सा बताता रहा है। हर बार जब भारतीय नेता या अधिकारी अरुणाचल की यात्रा करते हैं, तो चीन आपत्ति दर्ज करता है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की अरुणाचल यात्रा पर भी चीन ने विरोध जताया, जिसे भारत ने पूरी तरह खारिज कर दिया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा:
“हम चीन के किसी भी ऐसे दावे को सिरे से खारिज करते हैं। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है, और रहेगा।”
इतिहास में अरुणाचल प्रदेश विवाद की जड़ें
अरुणाचल प्रदेश विवाद की जड़ें 1962 के भारत-चीन युद्ध तक जाती हैं। मैकमोहन रेखा को भारत अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है, जबकि चीन इसे मान्यता नहीं देता। इसी कारण यह विवाद बार-बार उभरता रहता है।
राजनीतिक और सामरिक महत्व
अरुणाचल प्रदेश भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का एक सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य है। इसकी भौगोलिक स्थिति चीन, भूटान और म्यांमार की सीमाओं से लगती है। इसलिए चीन की गतिविधियों पर भारत की नजर बनी रहती है।
भारत ने वहां सड़क, हवाई पट्टी और बुनियादी ढांचे का विकास तेज किया है, जिससे चीन को आपत्ति रहती है।
भारत का स्पष्ट रुख
भारत सरकार बार-बार स्पष्ट कर चुकी है कि वह अपने क्षेत्र की सुरक्षा और संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगी। सरकार ने यह भी साफ किया है कि अरुणाचल प्रदेश में विकास कार्य भारत का आंतरिक मामला है और इस पर कोई बाहरी टिप्पणी स्वीकार नहीं की जाएगी।
जनता और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
अरुणाचल प्रदेश विवाद पर आम जनता और सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने सरकार के रुख का समर्थन किया है। सोशल मीडिया पर भी भारत के समर्थन में ट्रेंड चलाए जा रहे हैं। विपक्ष ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार के साथ एकजुटता दिखाई है।