कोर्ट ने 30 दिन में सुनाया फैसला, बुजुर्ग पिता को मिला संपत्ति पर हक

बुजुर्ग पिता के अधिकार

बुजुर्ग पिता के अधिकार: जब अपनों से ही मिलती है पीड़ा

भारत में माता-पिता को भगवान का दर्जा दिया गया है, लेकिन जब वही संतान उन्हें बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित कर दे, तो समाज और मानवता दोनों शर्मसार हो जाते हैं। एक ऐसी ही घटना सामने आई है उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से, जहाँ एक इकलौते बेटे ने अपने बुजुर्ग पिता के अधिकार को नकारते हुए उन्हें शौचालय की सुविधा से भी वंचित रखा।


बुजुर्ग पिता के अधिकार –घटना की जानकारी

75 वर्षीय एक बुजुर्ग व्यक्ति ने स्थानीय कोर्ट में अर्जी लगाई कि उनका बेटा उन्हें घर में बने शौचालय का उपयोग नहीं करने देता। शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण वे बाहर भी नहीं जा सकते थे। उनके लिए घर में किसी भी प्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई थी।


कोर्ट का सख्त फैसला

बलिया कोर्ट ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हुए बेटे को 30 दिन के भीतर शौचालय बनवाने का आदेश दिया है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है। कोर्ट ने साथ ही बुजुर्ग को मानसिक उत्पीड़न से बचाने के लिए पुलिस संरक्षण देने के निर्देश भी जारी किए हैं।


बुजुर्ग पिता

शौचालय का महत्व

आज के युग में शौचालय केवल सुविधा नहीं, बल्कि सम्मान और स्वच्छता का प्रतीक बन गया है। सरकार के “स्वच्छ भारत मिशन” जैसे कार्यक्रमों ने इसकी महत्ता को और बढ़ाया है। ऐसे में यदि कोई बेटे अपने बुजुर्ग पिता के अधिकार को इस हद तक नजरअंदाज़ करे, तो यह मिशन और सामाजिक जिम्मेदारियों दोनों को विफल करता है।


पारिवारिक रिश्तों में संवेदनहीनता

आज की न्यूक्लियर फैमिली व्यवस्था में रिश्तों में भावनाओं की कमी साफ दिखती है। बुजुर्ग पिता को बोझ समझा जाने लगा है। ये एक चिंताजनक स्थिति है जहां परिवारों में संवेदना, जिम्मेदारी और मूल्यों का पतन होता जा रहा है।


कानून की नज़र से

भारत में लागू है “Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007” जो बच्चों को अपने बुजुर्ग माताबुजुर्ग पिता  की देखभाल करने के लिए बाध्य करता है। इस एक्ट के अंतर्गत संतान की उपेक्षा पर सज़ा और जुर्माने का प्रावधान भी है।


सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

इस घटना के वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर बेटे की जमकर निंदा की गई। कुछ वायरल टिप्पणियाँ:

  • “ऐसे बेटे से तो अनाथ होना ही बेहतर”

  • “बुजुर्गों का सम्मान ही असली सेवा है”

  • “हर जिले में ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए”


मनोवैज्ञानिक पहलू

बुजुर्गों में उपेक्षा की भावना तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसी समस्याओं को जन्म देती है। उन्हें केवल दवा और खाना नहीं, सम्मान, स्नेह और संवाद भी चाहिए। समाज में उनकी भूमिका को पहचान और सम्मान देना अनिवार्य है।


समाधान की दिशा

  • हर जिले में बुजुर्ग शिकायत निवारण केंद्र बनें।

  • पंचायत स्तर पर मानवाधिकार निगरानी समितियां गठित हों।

  • स्कूलों में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।

  • सोशल कैंपेन के ज़रिए परिवारों में जागरूकता लाई जाए।


निष्कर्ष

यह घटना केवल एक खबर नहीं बल्कि समाज के लिए चेतावनी है। जिस पिता ने बेटे को चलना सिखाया, वही आज शौच के लिए भी तरस रहा है। बुजुर्ग पिता के अधिकार की रक्षा परिवार, समाज और सरकार – तीनों की जिम्मेदारी है।


आप क्या कर सकते हैं?

  • अपने आसपास के बुजुर्गों की स्थिति पर ध्यान दें

  • किसी भी अन्याय की सूचना स्थानीय प्रशासन को दें।

  • अपने घर के बुजुर्गों से संवाद बनाए रखें, और उन्हें बोझ नहीं आशीर्वाद मानें।

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