परिचय
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुई बिहार वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक हलकों में भारी बहस छिड़ी हुई है। इस प्रक्रिया के तहत लाखों मतदाताओं को अपनी पहचान के दस्तावेज प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया पर कुछ दलों ने सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। अब कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस प्रक्रिया पर कोई रोक नहीं लगाएगा।
क्या है बिहार वोटर वेरिफिकेशन?
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान चलाया जा रहा है, जिसे आमतौर पर “बिहार वोटर वेरिफिकेशन” कहा जा रहा है। इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची में दर्ज प्रत्येक मतदाता की पहचान की पुन: पुष्टि की जा रही है। खासकर 2003 के बाद मतदाता सूची में जोड़े गए नामों की सत्यता की जांच के लिए दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
10 जुलाई 2025 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह बिहार वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाएगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि वह चुनाव आयोग की मंशा पर फिलहाल संदेह नहीं कर सकता, लेकिन उसने यह भी जोड़ा कि इस प्रक्रिया की समय-सीमा, प्रक्रिया की पारदर्शिता और प्रभावित नागरिकों की सुनवाई जैसे विषयों पर आयोग को स्पष्टीकरण देना होगा।
याचिकाकर्ताओं के आरोप
इस मामले में याचिका दायर करने वाले विपक्षी गठबंधन और ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने अदालत को बताया कि:
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2003 के पहले जो मतदाता हैं, उनसे कोई दस्तावेज नहीं मांगे जा रहे हैं।
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लेकिन 2003 के बाद जुड़े वोटर्स से पहचान और नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।
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इससे गरीब, दलित, प्रवासी मजदूर और ग्रामीण मतदाता प्रभावित होंगे, क्योंकि उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं।
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यह प्रक्रिया भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।
बिहार वोटर वेरिफिकेशन – चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग ने अदालत में कहा कि:
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यह पूरी प्रक्रिया भारत के चुनाव आयोग के निर्देशानुसार नियमित और वैध है।
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मतदाताओं को सूची से हटाने का निर्णय कोई BLO नहीं लेता, बल्कि सभी मामलों की समीक्षा अधिकारी करते हैं।
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आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि वह किसी की नागरिकता जांच नहीं कर रहा, बल्कि केवल मतदाता सूची को अपडेट कर रहा है।
क्यों हो रहा विरोध?
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वक्त गलत चुना गया है – जुलाई में बिहार के कई हिस्सों में बाढ़ की स्थिति होती है। ऐसे में BLO से संपर्क करना कठिन है।
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दस्तावेजों की कमी – बिहार में बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं जो शहरी क्षेत्रों या अन्य राज्यों में मजदूरी करते हैं। उनके पास जरूरी कागजात नहीं हैं।
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चुनाव से पहले डर का माहौल – विपक्ष को लगता है कि इस प्रक्रिया के ज़रिए सरकार कुछ खास वर्गों के वोटर को बाहर करने की कोशिश कर रही है।
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सूचना का अभाव – बड़ी संख्या में मतदाताओं को यह जानकारी तक नहीं है कि उनसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मतदाता सूची की शुद्धता ज़रूरी है, लेकिन इसका समय और तरीका चुनावी प्रक्रिया पर प्रभाव डाल सकता है। यदि इस प्रक्रिया से विश्वास खोता है, तो यह लोकतंत्र के लिए घातक हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
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कोर्ट ने आयोग से पूछा कि यह प्रक्रिया चुनाव के ठीक पहले ही क्यों शुरू की गई?
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कोर्ट ने कहा, “आपको यह साबित करना होगा कि मतदाताओं को हटाने की प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय का पालन हो रहा है।”
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कोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को अगली सुनवाई की तारीख दी है और चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने को कहा है।
बिहार वोटर वेरिफिकेशन का असर
प्रभाव क्षेत्र | संभावित असर |
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ग्रामीण क्षेत्र | दस्तावेज़ न होने के कारण वोट कट सकते हैं |
प्रवासी मजदूर | शहर से बाहर होने के कारण वेरिफिकेशन मुश्किल |
युवा वोटर | जिनका नाम हाल ही में जुड़ा है, उन्हें प्रक्रिया का पता नहीं |
अल्पसंख्यक वर्ग | डर और भ्रम की स्थिति |
निष्कर्ष
बिहार वोटर वेरिफिकेशन आज सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस प्रक्रिया को रोकने से इनकार किया है लेकिन स्पष्ट संकेत दिए हैं कि यह प्रक्रिया न्यायसंगत और पारदर्शी होनी चाहिए। अगली सुनवाई तक सभी की नजरें अब चुनाव आयोग की ओर हैं।