तुर्की और अज़रबैजान द्वारा पाकिस्तान के समर्थन पर भारत की प्रतिक्रिया: एक कूटनीतिक दृष्टिकोण
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए चार दिवसीय सशस्त्र संघर्ष, जिसे भारत सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया है, ने दक्षिण एशिया की भूराजनीतिक स्थिति को एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर ला दिया है। इस सैन्य कार्रवाई के दौरान जब भारत ने पाकिस्तान के कुछ प्रमुख हवाई ठिकानों पर हमले किए, तब तुर्की और अज़रबैजान जैसे देशों ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया। इन बयानों और रुख ने भारत में व्यापक आक्रोश और विरोध को जन्म दिया है।
तुर्की और अज़रबैजान का पाकिस्तान के साथ ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंध रहे हैं। तुर्की ने हमेशा कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का पक्ष लिया है और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आलोचना की है। वहीं अज़रबैजान भी इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) के सदस्य के रूप में अक्सर पाकिस्तान के दृष्टिकोण को समर्थन देता रहा है। लेकिन इस बार जब भारत ने आत्मरक्षा और सुरक्षा के तहत सैन्य कार्रवाई की, तब इन दोनों देशों का एकतरफा पाकिस्तान समर्थन भारत को खटका।
भारत के भीतर जनता और कुछ राजनीतिक दलों में इन देशों के प्रति नाराज़गी तेजी से बढ़ी है। सोशल मीडिया पर #BoycottTurkey और #BoycottAzerbaijan जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। कई लोग तुर्की और अज़रबैजान की यात्रा रद्द कर रहे हैं, और ट्रैवल एजेंसियों ने बताया है कि इन देशों के लिए बुकिंग में भारी गिरावट आई है।
कूटनीतिक रूप से देखा जाए तो भारत सरकार ने अभी तक संयम बरता है, लेकिन विदेश मंत्रालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी भी देश की ऐसी टिप्पणी या रुख को स्वीकार नहीं करेगा जो भारत की संप्रभुता या आत्मरक्षा के अधिकार पर प्रश्नचिह्न लगाता हो। विश्लेषकों का मानना है कि इस घटना से भारत इन दोनों देशों के साथ अपने संबंधों की समीक्षा कर सकता है।
इस स्थिति ने एक बार फिर यह साबित किया है कि वैश्विक राजनीति में राष्ट्रों के बीच दोस्ती स्थायी नहीं होती — यह अपने-अपने हितों पर आधारित होती है। भारत को अपनी विदेश नीति में और अधिक रणनीतिक लचीलापन अपनाने की ज़रूरत है, ताकि वह ऐसे समय पर अपने हितों की रक्षा कर सके।
इस घटनाक्रम का असर न केवल राजनयिक स्तर पर, बल्कि व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी पड़ने की संभावना है। जहां एक ओर भारत ने सैन्य रूप से पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया, वहीं दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने और असंतुलन से निपटने की चुनौती भी अब सामने है।
निष्कर्ष:
तुर्की और अज़रबैजान का पाकिस्तान के प्रति झुकाव नया नहीं है, लेकिन ऐसे संवेदनशील समय पर सार्वजनिक समर्थन भारत के लिए अस्वीकार्य है। यह स्थिति भारत को अपनी रणनीतिक विदेश नीति को फिर से परिभाषित करने की दिशा में प्रेरित कर सकती है।