तुर्की और अज़रबैजान के पाकिस्तान समर्थन के बाद भारतीयों का शांतिपूर्ण विरोध: अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नया मोड़
हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच उत्पन्न हुए सैन्य तनाव और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत द्वारा पाकिस्तान के वायुसेना ठिकानों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक्स के बाद, कई देशों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। इसी दौरान तुर्की और अज़रबैजान ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया, जिसे भारत में एकतरफा और पक्षपाती कूटनीतिक रुख के रूप में देखा गया।
भारत में इस समर्थन को बेहद नकारात्मक रूप में लिया गया। यह पहली बार नहीं है कि तुर्की ने कश्मीर और भारत-पाक संबंधों पर पाकिस्तान का समर्थन किया हो, लेकिन इस बार स्थिति अधिक संवेदनशील थी क्योंकि मामला सीधे भारत की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा था। अज़रबैजान ने भी इसी दिशा में प्रतिक्रिया दी, जिससे भारत के नागरिकों और सोशल मीडिया यूज़र्स में असंतोष और नाराज़गी की लहर दौड़ गई।
इस असंतोष का सबसे प्रमुख और प्रत्यक्ष रूप पर्यटन बहिष्कार (travel boycott) के रूप में सामने आया। बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों ने तुर्की और अज़रबैजान की अपनी यात्रा योजनाएं रद्द करनी शुरू कर दीं। विभिन्न ट्रैवल एजेंसियों और ऑनलाइन बुकिंग प्लेटफॉर्म्स के अनुसार, इन दोनों देशों के लिए बुकिंग में अचानक भारी गिरावट देखी गई है। ट्रैवल इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का कहना है कि जो टूर पैकेज पहले हफ्तों में फुल बुक होते थे, अब वे खाली पड़े हैं।
यह बहिष्कार केवल व्यक्तिगत नाराज़गी का मामला नहीं है, बल्कि यह एक शांतिपूर्ण और संगठित नागरिक प्रतिक्रिया का उदाहरण है। भारतीय जनता यह संदेश देना चाहती है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को नजरअंदाज़ या चुनौती देने वाले देशों के साथ आर्थिक और सामाजिक स्तर पर सामान्य संबंध बनाए रखना अब स्वीकार्य नहीं है।
इसके साथ ही, भारत के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर #BoycottTurkey और #BoycottAzerbaijan जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं। इन हैशटैग्स के माध्यम से लोग सरकार से अपील कर रहे हैं कि इन देशों के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंधों की समीक्षा की जाए। इसके अतिरिक्त, ट्रैवल व्लॉगर्स, इन्फ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स भी अपने फॉलोअर्स से इन देशों की यात्रा न करने की अपील कर रहे हैं।
इस स्थिति का प्रभाव केवल पर्यटन तक सीमित नहीं है। व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और जनसंपर्क के अन्य पहलुओं पर भी असर पड़ना तय है। कई भारतीय कंपनियों और आयोजकों ने तुर्की और अज़रबैजान में होने वाले कार्यक्रमों को रद्द करने या स्थगित करने की घोषणा की है। यह घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि आज के वैश्विक युग में नागरिकों की राय और भावना भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकती है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति भारत के लिए एक अवसर भी है — अपनी विदेश नीति को और अधिक रणनीतिक एवं राष्ट्रहित आधारित बनाने का। भारत अब उन देशों के साथ गहरे संबंध बनाने की ओर अग्रसर हो सकता है जो न केवल आर्थिक और रणनीतिक रूप से सहायक हों, बल्कि भारत की संप्रभुता का सम्मान भी करते हों।
भारत सरकार ने अभी तक इस विषय पर कोई सीधा राजनयिक बयान नहीं दिया है, लेकिन विदेश मंत्रालय की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि भारत अपनी सुरक्षा और संप्रभुता से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा। यदि भविष्य में इन देशों की ओर से भारत-विरोधी रवैया जारी रहता है, तो यह संभव है कि सरकार भी इन संबंधों की समीक्षा करे।
निष्कर्ष
तुर्की और अज़रबैजान द्वारा पाकिस्तान के समर्थन से पैदा हुई प्रतिक्रिया भारत के नागरिक समाज की जागरूकता और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है। यह स्पष्ट करता है कि आज का भारतीय नागरिक केवल सरकार पर निर्भर नहीं है, बल्कि विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी अपनी भूमिका निभा रहा है — शांतिपूर्ण बहिष्कार और सार्वजनिक दबाव के माध्यम से। आने वाले समय में यह घटना भारत के वैश्विक संबंधों और विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में याद की जाएगी।