“एटा: 1 क्रूर पिता ने बेरहमी से बेटी को मौत के घाट उतारा”

पिता

अपनी ही बेटी की हत्या! एटा में रिश्तों को शर्मसार करने वाली वारदात ने झकझोर


 एटा में सनसनीखेज वारदात: पिता ने ही बेटी को उतारा मौत के घाट

उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले से एक ऐसी दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है, जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। यहाँ एक पिता ने अपनी ही बेटी की बेरहमी से हत्या कर दी। बताया जा रहा है कि आरोपी पिता दीपक यादव ने पहले से ही अपनी बेटी की हत्या का मन बना लिया था। इस जघन्य अपराध ने न केवल रिश्तों को शर्मसार किया है बल्कि पूरे इलाके में सनसनी फैला दी है।


 पुलिस को शक, पिता ने प्लानिंग के तहत की हत्या

पुलिस के अनुसार, दीपक यादव ने घटना से पहले ही सुसाइड करने का भी मन बना लिया था। घटना के बाद वह गांव छोड़कर फरार हो गया था। उसे बाद में एक रिश्तेदार के घर से गिरफ्तार किया गया।

पुलिस को जो शुरुआती जानकारी मिली है, वह बेहद चौंकाने वाली है। दीपक को यह मंज़ूर नहीं था कि उसकी बेटी कमाकर घर चलाए। उसे लगता था कि उसके घर की लड़कियां बाहर काम नहीं करेंगी और यही कारण बना इस निर्मम हत्या का।


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 क्या था पूरा मामला?

 बेटी की कमाई बनी हत्या की वजह?

गांववालों और रिश्तेदारों के अनुसार, दीपक की बेटी एक ऑनलाइन फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म पर काम करके घर खर्च में मदद कर रही थी। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और बेटी की कमाई घर के लिए बहुत जरूरी थी। लेकिन दीपक को यह मंज़ूर नहीं था कि एक लड़की कमाकर घर चलाए।

 “मेरी बेटी कमाती है, इसलिए उसका नियंत्रण मुझ पर नहीं रहा”

गांव के ही एक व्यक्ति ने बताया कि दीपक अकसर कहता था, “अब मेरी बेटी कमाती है, इसलिए वह मेरी बात नहीं मानती।” इसी तनाव और मानसिक अवसाद के चलते दीपक ने इस खौफनाक कदम को अंजाम दे दिया।


 घटना की टाइमलाइन

दिनांक घटना
3 जुलाई दीपक और उसकी बेटी के बीच झगड़ा हुआ
4 जुलाई सुबह लड़की घर से नहीं निकली
4 जुलाई शाम पड़ोसियों को शक हुआ और पुलिस को सूचना दी गई
5 जुलाई पुलिस ने शव बरामद किया, दीपक फरार मिला
6 जुलाई दीपक को एक रिश्तेदार के घर से पकड़ा गया

 मानसिक स्थिति का सवाल: हत्या या मानसिक बीमारी?

इस केस में सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या दीपक मानसिक रूप से अस्थिर था या फिर यह एक सोची-समझी साजिश थी। पुलिस द्वारा उसकी मानसिक स्थिति की भी जांच की जा रही है।

अगर मानसिक असंतुलन की पुष्टि होती है, तो इस केस का रुख पूरी तरह बदल सकता है। लेकिन यदि यह पूरी तरह प्लानिंग के तहत किया गया अपराध था, तो पिता दीपक को कड़ी से कड़ी सजा मिलना तय है।


 गांव में मातम, परिवार में आक्रोश

यह खबर जैसे ही इलाके में फैली, पूरे गांव में मातम पसर गया। गांववालों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि पिता दीपक जैसा शांत दिखने वाला आदमी ऐसा भयंकर कदम उठा सकता है। कई लोगों ने यह भी कहा कि पिता और बेटी में पहले भी बहसें होती थीं, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि बात इतनी आगे बढ़ सकती है।


पिताक्या कहता है भारतीय कानून?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत किसी भी व्यक्ति द्वारा की गई हत्या के लिए उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है। अगर यह साबित हो गया कि पिता दीपक ने जानबूझकर और पूर्वनियोजित तरीके से अपनी बेटी की हत्या की है, तो उसे उम्रकैद या मृत्युदंड तक मिल सकता है।

यदि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त पाया जाता है, तो IPC की धारा 84 के तहत वह अपराध से छूट भी पा सकता है — बशर्ते यह साबित हो जाए कि घटना के समय वह अपने होशोहवास में नहीं था।


 सोशल मीडिया पर गुस्सा और आक्रोश

इस केस ने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि कैसे कोई पिता इतनी निर्ममता से अपनी ही बेटी की हत्या कर सकता है।

कुछ चर्चित टिप्पणियाँ:

  • “ऐसे लोगों को सरेआम फांसी दी जानी चाहिए!”

  • “रिश्ते अब भरोसे के काबिल नहीं रहे!”

  • “क्या लड़कियों का आत्मनिर्भर होना इतना बड़ा गुनाह है?”


 जांच में सामने आ सकते हैं और भी राज

पुलिस अभी भी इस केस की जांच कर रही है। माना जा रहा है कि दीपक की जिंदगी में और भी कई तनाव के कारण थे। उसकी पत्नी से भी पूछताछ की जा रही है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि दीपक पर पहले से ही घरेलू हिंसा के मामले दर्ज थे।


एक सवाल समाज से: कब बदलेगी सोच?

यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं है, यह एक सोच का प्रतिबिंब है। आज भी कई जगहों पर लड़कियों को कमज़ोर, अधीन और केवल घरेलू कार्यों तक सीमित समझा जाता है। जब कोई लड़की आत्मनिर्भर बनने लगती है, तो समाज के कुछ लोग उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते।

इस केस ने एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हमारा समाज सच में बेटियों को बराबरी का हक़ देता है?


 निष्कर्ष

एटा की यह घटना केवल एक आपराधिक मामला नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और मानसिक रोग की पहचान भी है। जब तक हम अपने घरों में बेटियों को बराबरी का दर्जा नहीं देंगे, तब तक ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति होती रहेगी।

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